July 23, 2025 10:01 am

छत्तीसगढ़: रायगढ़ में अडानी द्वारा संचालित कोयला खदान के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू

छत्तीसगढ़ . रायगढ़ जिले के तमनार तहसील के मुड़ागांव और सरायटोला गांवों में 26 और 27 जून को कम से कम 5,000 पेड़ काटे गए. यह गारे पाल्मा सेक्टर II कोयला ब्लॉक में कोयला खदान स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का अभियान था. जमीनी स्तर पर मौजूद कार्यकर्ताओं ने द वायर को यह जानकारी दी.

यह खदान महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको-MAHAGENCO) के लिए अडानी समूह द्वारा संचालित की जाएगी.

अनुमान है कि इस खदान से कम से कम 655 मिलियन मीट्रिक टन कोयला प्राप्त होगा, लेकिन परियोजना से 14 गांव सीधे प्रभावित होंगे और इसके लिए लगभग 2,584 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है.

इसमें से लगभग 215 हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें पेड़ों और अन्य वनस्पतियों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाएगा. इस क्षेत्र में छह अन्य कोयला खदानें पहले से ही चालू हैं तथा चार और खदानों पर काम चल रहा है.

सूत्रों ने द वायर को बताया कि स्थानीय पुलिस ने 26 जून को एक दिन के लिए सात लोगों को अवैध रूप से हिरासत में रखा. उन्होंने कहा कि पेड़ों की कटाई की निगरानी के लिए 26 जून को कम से कम 2,000 पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया था, मुदागांव और सरायटोला गांवों में 27 जून को भी अभियान जारी रहा.

वनों की कटाई जारी है, जबकि स्थानीय लोग लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और परियोजना के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं, जिनसे जुड़े मामलों की सुनवाई छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और भारत की सर्वोच्च हरित अदालत, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) दोनों में हो रही है.

अवैध हिरासत, पेड़ों की कटाई

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच 26 जून की सुबह मुड़ागांव और सरायटोला गांवों में पेड़ों की कटाई शुरू हो गई.

क्षेत्र में सक्रिय मानवाधिकार संगठन छत्तीसगढ़ एसोसिएशन फॉर जस्टिस एंड इक्वालिटी (सीएजेई) ने एक बयान में कहा, ‘आज सुबह, (26 जून को) पुलिस और जिला प्रशासन ने प्रभावित ग्रामीणों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, जो छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के मुड़ागांव में कोयला खनन के लिए वनों की कटाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.’

सीएजेई ने बयान में कहा कि पुलिस कर्मियों, वन विभाग के अधिकारियों और अडानी पावर के कर्मचारियों ने जंगल को घेर लिया और पेड़ों को काटना शुरू कर दिया.

26 जून को मजदूरों ने मुडागांव और सरायटोला गांवों में बडे पैमाने पर जंगल के पेड़ों को काट दिया.

बयान के अनुसार, पुलिस ने स्थानीय कांग्रेस विधायक विद्यावती सिदार, लेखिका और कार्यकर्ता रिनचिन, साथ ही तीन महिलाओं सहित सात लोगों को हिरासत में लिया, जो महुआ फूल इकट्ठा करने और विरोध प्रदर्शन में शामिल होने जा रही थीं. उन्हें शाम को छोड़ दिया गया. सीएजेई की सदस्य श्रेया खेमानी ने कहा कि उनकी हिरासत अवैध थी.

उन्होंने द वायर को बताया, ‘लोगों को हिरासत में लेने का कोई कारण नहीं बताया गया और उन्हें स्थानीय रेंज कार्यालय ले जाया गया तथा वहां पूरे दिन हिरासत में रखा गया.’

ज़मीन पर मौजूद सूत्रों ने द वायर को बताया कि 27 जून को मुड़ागांव और सरायटोला गांवों में पेड़ों की कटाई जारी रही और मज़दूरों ने लकड़ियां हटा दीं. कम से कम 1,000 लोगों की मौजूदगी में ऊंचे, पत्तों से लदे पेड़ आरी की मदद से धराशायी हो गए.

इस बीच, कुछ महिलाओं ने गिरे हुए पेड़ों के ठीक बगल में वन वृक्षों के पौधे रोपे. जब द वायर ने रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक से बात करने की कोशिश की तो उनसे फोन पर संपर्क नहीं हो सका.

गारे पाल्मा सेक्टर II कोयला खदान

कोयला मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में गारे पाल्मा सेक्टर II कोयला खदान को 2015 में महाजेनको को आवंटित किया है. इस खदान से अनुमानित 655.153 मिलियन मीट्रिक टन कोयला प्राप्त होगा.

महाजेनको के अनुसार, यह कोयला महाराष्ट्र में तीन ताप विद्युत संयंत्रों की जीवाश्म ईंधन मांगों को पूरा करेगा: 1,000 मेगावाट (MW) चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन, 1,980 मेगावाट कोराडी थर्मल पावर स्टेशन और 1,000 मेगावाट परली थर्मल पावर स्टेशन जो चंद्रपुर, नागपुर और बीड जिलों में स्थित हैं.

करीब 7,642 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना से जिले के 14 गांव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे – टिहली रामपुर, कुंजमुरा, गारे, सरायटोला, मुदागांव, राडोपाली, पाटा, चितवाही, ढोलनारा, झिंकाबहाल, डोलेसरा, भालुमुरा, सरसमल और लिब्रा. महाजेनको के अनुमान के मुताबिक करीब 1,700 परिवार विस्थापित होंगे.

रायगढ़ के तमनार में पेड़ कटाई की निगरानी करते पुलिसकर्मी.

अडानी समूह महाजेनको के गारे पाल्मा सेक्टर II कोयला खनन परियोजना का खनन डेवलपर और संचालक है. कोयला खनन परियोजना के लिए कुल 2,583.487 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण प्रस्तावित है. इसमें 214.869 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है.

महाजेनको द्वारा लागत-लाभ विश्लेषण के अनुसार, वनों के इस परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं को 15.22 करोड़ रुपये का नुकसान होगा.

हालांकि, स्थानीय समुदायों इन वनों को खोना नहीं चाहते क्योंकि वे इन्हें अपनी पैतृक भूमि और एक ऐसा संसाधन मानते हैं जिस पर वे अपनी आजीविका चलाते हैं.

स्थानीय समुदाय और कार्यकर्ता 2017 से ही इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं, मुख्य रूप से इसके कारण होने वाले वनों के नुकसान के कारण.

लेखक और कार्यकर्ता रिनचिन, जो स्थानीय समुदायों के साथ वनों की कटाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और 26 जून को हिरासत में लिए गए सात लोगों में से एक हैं, के अनुसार, परियोजना के लिए ली जाने वाली वन भूमि का लगभग आधा हिस्सा सामुदायिक वन है, जो मुड़ागांव ग्रामसभा के अंतर्गत आता है (जिसमें मुडागांव और सरायटोला दोनों गांव शामिल हैं).

अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (जिसे वन अधिकार अधिनियम भी कहा जाता है) के अनुसार, सामुदायिक वन से तात्पर्य ‘गांव की पारंपरिक या प्रथागत सीमाओं के भीतर प्रथागत आम वन भूमि या चरवाहे समुदायों के मामले में परिदृश्य का मौसमी उपयोग, जिसमें आरक्षित वन, संरक्षित वन और संरक्षित क्षेत्र जैसे अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं, जिन तक समुदाय की पारंपरिक पहुंच थी.’

इस अधिनियम के अनुसार, समुदायों को किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनरुत्पादन या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार है, जिसे वे पारंपरिक रूप से स्थायी उपयोग के लिए संरक्षित और संरक्षित करते रहे हैं.

रिनचिन ने द वायर को बताया, ‘परियोजना के लिए वन मंजूरी भी धोखाधड़ी से दी गई है, जिसमें 14 प्रभावित गांवों से वन अधिकार अधिनियम के तहत कोई एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) प्राप्त नहीं किया गया है.’

मंजूरी रद्द हुई लेकिन फिर से दी गई

15 जनवरी, 2024 को एनजीटी ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जुलाई 2022 में महाजेनको को दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द कर दिया था. विस्तृत, 209-पृष्ठ के फैसले में कई चिंताओं का हवाला दिया गया.

एनजीटी ने उल्लेख किया कि सितंबर 2020 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की बैठक में दावा किया गया था कि तमनार ब्लॉक में रहने वाले लोगों का भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का स्वास्थ्य मूल्यांकन अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जबकि इसे फरवरी 2020 में ही प्रस्तुत किया जा चुका था.

एनजीटी के आदेश में कहा गया, ‘यह ईएसी की ओर से विवेक का इस्तेमाल न करने और दुराग्रह को दर्शाता है.’

27 जून को मुड़ागांव में पेड़ कटाई स्थल पर एकत्रित ग्रामीण.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसलिए, हम मानते हैं कि ईएसी के साथ-साथ मंत्रालय और सीसी की ओर से यह देखकर विवेक का प्रयोग नहीं किया गया है कि संबंधित क्षेत्र के स्वास्थ्य मूल्यांकन के संबंध में आईसीएमआर की रिपोर्ट, जिसके संबंध में प्रस्तावक को खनन कार्य आवंटित किया गया है, की जांच नहीं की गई है, हालांकि यह इस विषय पर एक प्रासंगिक सामग्री है और इसलिए, अधिकारियों द्वारा लिया गया निर्णय जिसके परिणामस्वरूप पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की गई, कानून की दृष्टि से दोषपूर्ण है.’

एनजीटी के आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है – इलाके की ढलान, खुली खदानों का संचालन, जिनका उपयोग खनन प्रक्रिया में भी किया जाएगा, और केलो नदी में सतही जल की निकासी, जो महानदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है, सहित कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए – कि परियोजना समर्थकों को पर्यावरण मंजूरी प्रदान करते समय सक्षम प्राधिकारी (पर्यावरण एवं वन मंत्रालय) द्वारा केलो नदी सहित जल विज्ञान पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया है.

एनजीटी द्वारा उठाई गई चिंताओं में सबसे प्रमुख यह तथ्य था कि सार्वजनिक सुनवाई (सितंबर 2019 में आयोजित) में परियोजना के खिलाफ लोगों के विरोध को कार्यवाही में दर्ज नहीं किया गया था, और कम से कम 1,000 लोगों को सार्वजनिक सुनवाई स्थल में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था.

लेकिन न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले साल अगस्त में महाजेनको को एक नई पर्यावरणीय मंजूरी दे दी – एनजीटी द्वारा जनवरी में इसे रद्द करने के सिर्फ सात महीने बाद – उसी सार्वजनिक सुनवाई का उपयोग करते हुए, जिस पर एनजीटी ने चिंता जताई थी.

नई पर्यावरण मंजूरी के बाद एनजीटी मामले में याचिकाकर्ताओं, जिनमें रिनचिन भी शामिल हैं, ने फिर से एनजीटी में अपील की है. मामला ग्रीन कोर्ट के समक्ष लंबित है.

Khabar 30 Din
Author: Khabar 30 Din

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