नई दिल्ली: भारतीय निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसके पास नागरिकता का प्रमाण मांगने का अधिकार है. इसके साथ ही आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपने विवादास्पद ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (एसआईआर) अभियान में आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज़ मानने के अदालत के सुझाव को भी खारिज कर दिया है.
इस संबंध में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची संशोधन को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मांगे गए हलफनामे को दाखिल कर दिया है.
मालूम हो कि उस पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा था कि नागरिकता एक ऐसा मुद्दा है जिसका निर्धारण भारत के चुनाव आयोग द्वारा नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय द्वारा किया जाना है.
हालांकि, अदालत की इस से चुनाव आयोग असहमत नज़र आता है.
आयोग को नागरिकता के आकलन का अधिकार
अब अपने हलफनामे में आयोग ने दावा किया है कि चुनाव आयोग को यह जांच करने का अधिकार है कि कोई भी व्यक्ति मतदाता सूची में पंजीकृत होने के मानदंडों को पूरा करता है या नहीं, जिसमें अन्य बातों के अलावा, मतदाता सूची के अनुच्छेद 326 के अनुसार नागरिकता का आकलन भी शामिल है. ऐसी जांच संवैधानिक रूप से अनिवार्य है और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के तहत स्पष्ट रूप से स्थापित है. यह शक्ति सीधे तौर पर अनुच्छेद 324 के प्रावधानों (326 के साथ पठित) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 और 19 से प्राप्त होती है.
इस जवाबी हलफनामे पर उपचुनाव आयुक्त संजय कुमार के हस्ताक्षर हैं.
उल्लेखनीय है कि अब तक आयोग ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को इस प्रक्रिया के चेहरे के तौर पर पेश किया था. हर दिन के अंत में प्रेस विज्ञप्ति के साथ उनकी अकेले की तस्वीर प्रकाशित की जाती है.
अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने यह भी दावा किया है कि मतदाता पात्रता सत्यापित करना भी उसका दायित्व है.
आयोग के अनुसार, ‘भारत के संविधान और वैधानिक प्रावधानों के तहत चुनाव आयोग मतदाताओं की पात्रता सत्यापित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि जो भी व्यक्ति पात्रता की अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है, उसका नाम मतदाता सूची में शामिल न हो. साथ ही सभी पात्रता आवश्यकताओं को पूरा करने वाला कोई भी व्यक्ति मतदाता सूची से बाहर न हो.’
चुनाव आयोग ने इस तथ्य का भी खंडन किया है कि नागरिकता से निपटने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है.
आयोग का कहना है कि नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 9 केवल विदेशी राज्य की नागरिकता के स्वैच्छिक अधिग्रहण के मामलों में नागरिकता की समाप्ति की बात करती है और केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह इस पर निर्णय ले कि भारत के किसी नागरिक ने कब और कैसे किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त की है. केवल इसी सीमित उद्देश्य के लिए अन्य सभी प्राधिकारियों को छोड़कर केवल केंद्र सरकार को अनन्य अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया है.
हलफनामे के आगे कहा गया है, ‘नागरिकता से संबंधित अन्य पहलुओं की जांच अन्य संबंधित प्राधिकारियों द्वारा अपने उद्देश्यों के लिए की जा सकती है, जिनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें ऐसा करने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य किया गया है, अर्थात, चुनाव आयोग.’
आयोग ने अदालत को यह कहकर भी आश्वस्त करने की कोशिश की है कि एसआईआर प्रक्रिया के तहत, किसी व्यक्ति की नागरिकता इस आधार पर समाप्त नहीं होगी कि उसे मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है.
दस्तावेजों की ये सूची ‘सांकेतिक है, संपूर्ण नहीं’: चुनाव आयोग
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया के लिए मतदाता द्वारा प्रस्तुत किए जा सकने वाले 11 दस्तावेज़ों की सूची जारी की है, जिसमें आधार को शामिल नहीं किया गया है, जिसे आयोग ने वर्षों पहले मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने का अनुरोध किया था. आश्चर्य की बात ये भी है कि आयोग ने स्वयं अपने मतदाता पहचान पत्र को भी वैध दस्तावेज़ नहीं माना है.
चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि दस्तावेजों की ये सूची ‘सांकेतिक है, संपूर्ण नहीं’, इसलिए अधिकारी मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों पर विचार कर सकते हैं.
आयोग ने स्पष्ट किया है कि वह विभिन्न कारणों से आधार, मतदाता पहचान पत्र या राशन कार्ड – जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है, पर विचार नहीं कर सकता.
आयोग द्वारा कहा गया है, ‘आधार को गणना फॉर्म में दिए गए 11 दस्तावेज़ों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि यह अनुच्छेद 326 के तहत पात्रता की जांच में मदद नहीं करता है. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पात्रता साबित करने के लिए आधार का इस्तेमाल अन्य दस्तावेज़ों के पूरक के रूप में नहीं किया जा सकता.’
बहरहाल, कई जगहों पर ऐसी खबरें आ रही हैं कि अधिकारी आधार कार्ड एकत्र कर रहे हैं.
आयोग ने अपने नोट में ‘फर्जी राशन कार्ड’ की व्यापक मौजूदगी भी जिक्र किया है, जो ऐसा लगता है कि राशन कार्ड को आधार से जोड़ने में सरकार की नाकामी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा हो.
चुनाव आयोग ने हलफनामे में अपने मतदाता पहचान पत्र को भी यह कहते हुए वैध दस्तावेज़ मानने से इनकार किया है कि मतदाता फोटो पहचान पत्र अपने स्वभाव से केवल मतदाता सूची की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है और अपने आप में मतदाता सूची में शामिल होने के लिए पूर्व-निर्धारित पात्रता स्थापित नहीं कर सकता.
