November 20, 2025 1:57 am

मिर्ज़ापुर: बीहड़ जंगल में प्रस्तावित अडानी के पावर प्लांट पर विवाद, पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी का आरोप

संतोष देव गिरि

मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश): उद्योगपति गौतम अडानी का एक और पावर प्लांट विवादों में है. अडानी समूह का मिर्ज़ापुर थर्मल एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड के न सिर्फ पर्यावरणीय क्षति की आशंका में स्थानीय लोगों के विरोध का सामना कर रहा है, बल्कि इसके ऊपर फर्जी जनसुनवाई के आरोप भी लग रहे हैं.

मिर्ज़ापुर जिले के ददरी खुर्द गांव के वन क्षेत्र में 1600 (2×800) मेगावाट की कोयला आधारित अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट की स्थापना को लेकर 11 अप्रैल, 2025 को एक जनसुनवाई का आयोजन किया गया था, जिसका मकसद स्थानीय लोगों से पर्यावरणीय स्वीकृति लेना था.

लेकिन स्थानीय लोगों ने इस जुटान को गैरकानूनी बताते हुए विरोध किया. आरोप है कि जल्दबाज़ी और ‘भाड़े की भीड़’ के बीच संपन्न हुई जनसुनवाई में प्रभावित समुदायों को ही नहीं बुलाया गया था. उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (यूपीपीसीबी) की वेबसाइट पर भी इस जुड़ी कोई सूचना नहीं मिली है.

जनसुनवाई के दौरान एकत्र लोग (फोटो: संतोष देव गिरि)

फिर ‘जनसुनवाई’ में शामिल कौन हुआ था?

देवरी खुर्द गांव सदर तहसील (मिर्ज़ापुर) के अंतर्गत आता है. कायदे से यह ‘जनसुनवाई’ देवरी खुर्द गांव के स्थानीय लोगों के बीच होनी चाहिए थी, लेकिन इसके बजाय मड़िहान स्थित प्राथमिक विद्यालय में जनसुनवाई आयोजित की गई.

कथित जनसुनवाई में उत्तर प्रदेश के पूर्व ऊर्जा राज्यमंत्री एवं भाजपा के मड़िहान विधायक रमाशंकर सिंह पटेल, अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) शिव प्रसाद शुक्ला, क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी सोनभद्र और अडानी ग्रुप के चेयरपर्सन दिनेश सिंह मौजूद थे.

इस ‘जनसुनवाई’ में बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी एवं जिले के गणमान्य लोगों के उपस्थित होने का दावा करते हुए कहा गया, ‘पावर प्लांट के लगने से क्षेत्र के काफी लोगों को रोजगार मिलेगा और जिले का विकास होगा.’ खुद क्षेत्रीय विधायक रमाशंकर सिंह पटेल ने विकास का दावा करते हुए महिलाओं को रोजगार मिलने तक की बात कह डाली.

हालांकि, पर्यावरणीय स्वीकृति के नाम हुए जुटान में विधायक ने पर्यावरणीय नुकसान, देवरी मड़िहान के जंगलों में वास करने वाले जंगली जीव-जंतुओं के जीवन पर मंडराने वाले खतरों, जंगलों के नष्ट होने के बाद होने वाली परेशानियों और निकट भविष्य में गहराने वाले जल संकट पर कुछ नहीं बोला.

इन्हीं वजहों से ‘जनसुनवाई’ का खुलकर विरोध हुआ. विरोध करने वालों ने कहा कि स्थानीय लोगों को न बुलाकर बाहरी लोगों, खासकर राजगढ़ विकास खंड क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों के लोगों को जिस तरह बुलाया गया, वह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, ताकि स्थानीय लोगों की आवाज दबाई जा सके.

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि कंपनी के लोग शुरू से ही जनहितों की अनदेखी करते आए हैं. पूर्व में वेलस्पन पावर एनर्जी ने किसानों की भूमि को हथियाने का भरपूर प्रयास किया था, लेकिन कंपनी को आखिरकार भागना पड़ा था.

अब वही काम अडानी की कंपनी मिर्ज़ापुर थर्मल एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है.

जंलग काटे जा रहे हैं, और इन जंगली पगडंडियों से भारी वाहन गुजर रहे हैं. (फोटो: संतोष देव गिरि)

एनजीटी की सुनवाई से पहले जनसुनवाई का औचित्य?

इस परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव से आशंकित लोगों ने सवाल उठाया है कि क्या यह पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 का उल्लंघन नहीं है? इतिहास दोहराया जा रहा है. 2016 में एनजीटी ने इसी स्थल के लिए पहले दी गई पर्यावरण स्वीकृति को रद्द कर दिया था, और इस समय गैरकानूनी निर्माण को लेकर एक मामला पहले से ही ट्रिब्यूनल में लंबित है.

ग्रामीणों के मुताबिक, अडानी की कंपनी द्वारा किए जा रहे अवैध निर्माण का मामला एनजीटी में लंबित है, 23 मई को अगली सुनवाई भी होनी है. ऐसे में सुनवाई से पहले यह जनसुनवाई किस बात की?

ग्रामीण सवाल करते हैं अभी एनजीटी की रिपोर्ट आई नहीं और जनसुनवाई कर ली गई, आखिरकार इतनी जल्दबाजी क्यों?

ददरी खुर्द गांव के किसान रामाज्ञा सिंह ‘द वायर हिंदी’ से बातचीत के दौरान पर्यावरणीय जनसुनवाई में अनियमितता, अपारदर्शिता एवं पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं.

वह बताते हैं, ‘मिर्जापुर जनपद के स्थानीय निवासियों और किसानों ने पर्यावरणीय जनसुनवाई प्रक्रिया में पाई गई गंभीर अनियमितताओं के संबंध में जिलाधिकारी, क्षेत्रीय अधिकारी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिखकर शिकायत की है.’

गुपचुप जनसुनवाई का आरोप 

किसान रामाज्ञा सिंह बताते हैं कि पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है, जबकि पर्यावरणीय जनसुनवाई से पूर्व इसका प्रकाशन एवं सार्वजनिक अवलोकन के लिए उपलब्ध कराना अनिवार्य है. ‘उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय या किसी भी सार्वजनिक पोर्टल पर 11 अप्रैल, 2025 को सुबह 11 बजे तक यह रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई गई थी. न तो स्थानीय समाचार पत्रों में सूचना प्रकाशित की गई, और न ही ग्राम स्तर पर प्रचार-प्रसार किया गया, जो कि जनसुनवाई प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगाता है.’

वह आगे बताते हैं, ‘जब हम संबंधित अधिकारियों से मिलने पहुंचे, तो हमें मिलने से रोका गया. जनसुनवाई में मुख्य अतिथि के रूप में ऐसे व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से परियोजना से जुड़े हुए हैं, जिससे निष्पक्षता प्रभावित होती है.’

ग्रामीणों के अनुसार, इससे यह संदेह पैदा होता है कि अधिकारी खुद भी पारदर्शिता के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक यह क्षेत्र पर्यावरण एवं जैवविविधता की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है. प्रस्तावित परियोजना से स्थानीय भू-परिस्थितिकी, जल स्रोत, वनभूमि और ग्रामीण जीवन पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका है.

इलाके के ग्रामीणों की मांग है कि जनसुनवाई को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए और ईआईए रिपोर्ट सहित सभी संबंधित दस्तावेज़ों को सार्वजनिक डोमेन में अविलंब जारी किया जाए. साथ ही इस प्रकरण की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष उच्चस्तरीय जांच कराई जाए, ताकि भविष्य में ऐसी अनियमितताएं न हो.

मड़िहान के जंगल पर मंडराता खतरा. (फोटो: संतोष देव गिरि)

पर्यावरण संकट पैदा कर सकता है अडानी का पावर प्लांट

अडानी समूह का पावर प्लांट मड़िहान वन रेंज के बीचों-बीच तैयार किया जाना है. मड़िहान का जंगल भारत की प्राकृतिक संपदा है. इस जंगल में कई संरक्षित वन्यजीव रहते हैं. कई तो उत्तर प्रदेश में दुर्लभ भी हैं. साल 2019 में डिविज़नल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) ने इस जंगल को ‘भालू संरक्षण रिजर्व’ घोषित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग को प्रस्ताव भेजा था, किंतु राज्य सरकार ने आज तक उस प्रस्ताव पर कोई संज्ञान नहीं लिया है.

लोगों का कहना है कि मड़िहान के जंगलों के नष्ट होने से महज जंगली जीव जंतुओं, पर्यावरण को ही खतरा नहीं होने वाला, बल्कि आसपास के इलाकों में जल संकट भी गहरा जाएगा और इसका सीधा असर खेती-किसानी से लेकर आस-पास के रहवासियों के रोजमर्रा के जीवन पर पड़ेगा. ऐसे में पलायन और भुखमरी जैसी संमस्याएं पैदा हो सकती हैं.

इससे पूर्व भी वेलस्पन पावर प्रोजेक्ट (Welspun Energy Power Project) मिर्जापुर के मामले में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी सामने आई थी, जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय हरित अधिकरण ‌द्वारा उक्त परियोजना को निरस्त कर दिया गया था. स्थानीय किसानों ने वेलस्पन पावर एनर्जी को लेकर जो चिंताएं जताई थीं, अब वही अडानी कंपनी के थर्मल पावर प्रोजेक्ट को भी लेकर उमड़ रही हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

Khabar 30 Din
Author: Khabar 30 Din

विज्ञापन
Advertisement
error: Content is protected !!