- मुस्लमानों की धार्मिक आस्थाओं को लेकर सियासी माहौल गर्म
- जब मुख्यमंत्री के साथ ऐसा हो सकता है तो फिर आम मुस्लमान की देश में क्या हैसियत
- सीएम उमर अब्दुल्ला के पक्ष में ममता, स्टालिन और अखिलेश यादव खुल कर सामने आये
- तुम यूं ही हर बात पर पाबंदियों का दौर लाओगे तो जब बदलेगी हुकूमत तो तुम ही बताओ तुम किस सरहद को फांद कर जाओगे
नई दिल्ली। हिजाब विवाद, बकरीद की कुर्बानी की निगरानी, अजान को लेकर बहस, खुले में नमाज के बाद अब फातिहा विवाद पर देश में मुस्लमानों की धार्मिक आस्थाओं को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। लोकतांत्रिक देश में चुने हुए मुख्यमंत्री को फातिहा पढऩे से रोकने की कोशिश में उपजे विवाद की चिंगारी से नये घमासान की आशंका बलवती हो रही है।
जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अबदुल्ला के पक्ष में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडू के सीएम स्टालिन और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मोर्चा संभाल लिया है। इन नेताओं ने सवाल पूछें है कि जब एक मुख्यमंत्री के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है तो फिर देश में मुस्लमानों की क्या स्थिति होगी?
‘अनिर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की’
सीएम उमर अबदुल्ला ने लिखा है कि मुझे इसी तरह शारीरिक रूप से हाथापाई का सामना करना पड़ा। लेकिन मैं ज्यादा मजबूत स्वभाव का हूं और मुझे रोका नहीं जा सकता था। मैं कोई भी गैरकानूनी या अवैध काम नहीं कर रहा था। दरअसल कानून के इन रखवालों को यह बताना होगा कि वे किस कानून के तहत हमें फातिहा पढऩे से रोक रहे थे। उन्होंने कहा कि अनिर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की और मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलने पर मजबूर किया। उन्होंने नक्शबंद साहब की दरगाह का दरवाजा बंद कर दिया और मुझे दीवार फांदने पर मजबूर किया। उन्होंने मुझे शारीरिक रूप से पकडऩे की कोशिश की लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था।
बीजेपी आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने संभाला मोर्चा
विपक्ष के करारे के आक्रमण को रोकने की जिम्मेदारी बीजेपी आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने संभाली है। उन्होंने ममता बनर्जी, स्टालिन और अखिलेश यादव के सवालों के जवाब में कहा है कि सीएम उमर अबदुल्ला के शहीद दिवस मनाने के आह्वान का समर्थन करना किसी स्मृति का विषय नहीं है। यह जानबूझकर तुष्टीकरण, ऐतिहासिक विकृतियों और मुस्लिम वोट बैंकों के लिए की गई मनमानी राजनीति का परिणाम है।
पूर्व सीएम अखिलेश यादव के साथ भी घटित हो चुकी है इस प्रकार की घटना
सीएम उमर अबदुल्ला के घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करने के बाद पूरे देश में राजनीतिक महौल गर्म हो चुका है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ इसी प्रकार की घटना उस समय घटित हुई थी जब वह जय प्रकाश नारायण की जयंती पर लखनउ स्थित जेपी सेंटर में लगी उनकी प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने जा रहे थे। उन्हें भी वहां जाने से रोका गया और बैरेकेटिंग लगा कर मार्ग को बंद कर दिया गया था। अखिलेश यादव ने सीएम उमर अबदुल्ला के साथ घटित घटना का वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि तुम यूँ ही हर बात पर पाबंदियों का दौर लाओगे, तो जब बदलेगी हुकूमत तो तुम ही बताओ तुम किस सरहद को फांद कर जाओगे।
क्या है पूरा मामला
1900 से 1930 के दौरान जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम समुदायों ने तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के खिलाफ आवाज उठाई थी और 13 जुलाई 1931 को महाराज की सेना से झड़प में 22 लोग मारे गए थे। जिसके बाद उमर के दादा शेख अब्दुल्ला ने 1949 में 13 जुलाई को शहीदी दिवस घोषित किया। इस शहीदी दिवस को लेकर घाटी से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पहले तक शासकीय अवकाश रहता था। लेकिन, अब इसे खत्म कर दिया गया है।
पहला संगठित दंगा हुआ था
अमित मालवीय ने कहा कि 13 जुलाई को कश्मीर में पहला संगठित सांप्रदायिक दंगा हुआ- राज्य, उसकी संस्थाओं और सबसे दुखद रूप से, निर्दोष हिंदुओं के खिलाफ एक हिंसक, इस्लामी विद्रोह। यह भारत की अवधारणा पर एक हमला था। इस दिन की शुरुआत श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर 7,000 से ज़्यादा इस्लामी कट्टरपंथियों की एक कट्टरपंथी भीड़ के इकठ्ठा होने से हुई, जहां एक मुस्लिम अलगाववादी आंदोलनकारी, अब्दुल कादिर पर विद्रोह भड़काने और हिंदुओं की हत्या का आह्वान करने का मुकदमा चल रहा था।
हिंसक हो गयी भीड़
अमित मालवीय के मुताबिक विरोध प्रदर्शन के बजाय भीड़ हिंसक हो गई और अल्लाह-हू-अकबर और इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगाते हुए कादिर की रिहाई की मांग करने लगी। जब पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की, तो उन पर पत्थरों और अस्थायी हथियारों से हमला किया गया। भीड़ ने जेल पर धावा बोल दिया सरकारी इमारतों में आग लगा दी, पुलिस के उपकरण लूट लिए और आग बुझाने की कोशिश कर रहे दमकल दस्तों पर हमला कर दिया। यह अचानक नहीं हुआ था। यह पूर्वनियोजित था।
शहीदों की कब्र पर जाना क्या गलत है : ममता
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा है कि शहीदों की कब्र पर जाने में क्या गलत है? यह न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार को भी छीनता है। आज सुबह एक निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ वह अस्वीकार्य है। चौंकाने वाला। शर्मनाक है।
क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए : स्टालिन
उनके पोस्ट को री-पोस्ट करते हुए तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने लिखा है कि ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग जोर पकड़ रही है वहां हो रही घटनाएं इस बात की भयावह याद दिलाती हैं कि हालात कितने बिगड़ चुके हैं। वहां के निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को सिर्फ 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने की इच्छा रखने पर नजरबंद किया जा रहा है और ऐसा करने के लिए उन्हें दीवारों पर चढऩे पर मजबूर किया जा रहा है। क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए? यह सिर्फ एक राज्य या एक नेता की बात नहीं है। तमिलनाडु से लेकर कश्मीर तक, केंद्र की भाजपा सरकार निर्वाचित राज्य सरकारों के अधिकारों को व्यवस्थित रूप से छीन रही है।
