नई दिल्ली PTI : आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने संसद के मानसून सत्र के मद्देनज़र शनिवार (19 जुलाई) को ‘इंडिया’ गठबंधन की होने वाली बैठक से ठीक पहले ये ऐलान किया कि आम आदमी पार्टी (आप) अब इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है.
समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में उन्होंने इस गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस के प्रति नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा, ‘कभी अखिलेश यादव के खिलाफ कोई टिप्पणी, कभी उद्धव ठाकरे के खिलाफ टिप्पणी, कभी ममता बनर्जी के खिलाफ कोई टिप्पणी. इंडिया गठबंधन जिस रूप में एकजुट होकर चलना चाहिए था, उसका सबसे बड़ा दल कौन है? कांग्रेस पार्टी है. कांग्रेस पार्टी ने सबसे बड़े दल की भूमिका निभाई क्या? सबसे बड़ा सवाल यह है.’
संजय सिंह ने आगे कहा, ‘इंडिया गठबंधन अपनी बैठक करके जो निर्णय करना चाहता है वह ले. इंडिया गठबंधन कोई बच्चों का खेल नहीं है. आप बताइए, उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद कोई मीटिंग की है? उस गठबंधन को आगे बढ़ाने की कोई पहल की?’
मालूम हो कि ‘इंडिया’ गठबंधन की आखिरी बैठक जून, 2025 में हुई थी. तब विपक्षी दलों ने मिलकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी.
इस संबंध में ‘इंडिया’ गठबंधन ने एक संयुक्त पत्र भी लिखा था, जिससे आम आदमी पार्टी ने तब भी किनारा कर लिया था. पार्टी ने इसके लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया था.
उल्लेखनीय है कि साल 2011 में हए अन्ना आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी, जो एक समय कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई और ईमानदार राजनीतिक ताकत के तौर पर उभरी थी, धीरे-धीरे अपनी पहचान खोती नज़र आई. पार्टी ने खुद को भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों से अलग जरूर दिखाने की कोशिश की, लेकिन 2024 में ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल होने के बाद आप का यह स्टैंड भी पीछे चला गया.
इसके अलावा इंडिया गठबंधन में होते हुए कई चुनावी रैलियों में कई बार आप और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल देखा गया, कभी कांग्रेस ने आप को भाजपा की बी पार्टी कहा, तो कभी आप ने कांग्रेस को.
आप और कांग्रेस के रिश्ते कभी अच्छे नहीं थे, सिर्फ गठबंधन की मजबूरी थी
आप को 2024 के लोकसभा चुनाव में झटका लगने के बाद असली झटका 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगा, जो आप का सबसे मज़बूत गढ़ माना जाता था. यहां 2015 और 2020 में 60 से ज़्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी सिर्फ़ 22 सीटों पर सिमट गई. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे बड़े नेता भी अपनी सीटें हार गए.
आप ने तब हार के लिए कांग्रेस की सक्रिय भूमिका को एक बड़ा कारण बताया था. कई सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने आप के वोट भी काटे थे, जिसका सीधा फायदा भाजपा को हुआ था. हालांंकि, तब कांग्रेस का कहना था कि वह मज़बूती से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है.
वैसे, आप और कांंग्रेस के बीच अक्सर मनमुटाव देखने को मिला है, दोनों के बीच कभी रिश्ते अच्छे नहीं थे, सिर्फ़ गठबंधन की मजबूरी से उन्हें साथ आना पड़ा. ये एक और सच्चाई है कि चाहे दिल्ली हो या पंजाब, आज आप जिन-जिन राज्यों में मज़बूत है, वहां एक समय कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी. दोनोंं ने 2024 का लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ा लेकिन कोई फ़ायदा नज़र नहीं आया.
दिल्ली चुनाव से कुछ महीने पहले हरियाणा में हुए चुनाव के दौरान भी इंडिया गठबंधन को लेकर कांग्रेस और आप के मतभेद सामने आए थे. हरियाणा में आप ने 80 से ज़्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन पार्टी का खाता भी नहीं खुला और दो प्रतिशत से भी कम मत मिले थे. जबकि कई सर्वे में बढ़त पाने वाली कांग्रेस भी 90 सीटों वाली विधानसभा में मात्र 37 पर सिमट गई. हालांकि, पार्टी का यहां 2019 के मुकाबले वोट प्रतिशत जरूर बढ़ा. यहां भी हार के बाद दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिला.
दिल्ली विधानसभा चुनावों में हार के बाद आम आदमी पार्टी ने पिछले महीने पंजाब और गुजरात की दो अहम सीटों पर अपने दम पर उपचुनाव जीतकर एक राजनीतिक मैसेज दिया. पंजाब में आप ने लुधियाना वेस्ट सीट पर कांग्रेस को हराया, जबकि गुजरात के विसावदर क्षेत्र में उसने बीजेपी को हराकर जीत दर्ज की. गुजरात में बीजेपी पिछले दो दशकों से सत्ता में है.
आप का राजनीतिक संकट और कांग्रेस की रार
इसके अलावा आप का इंडिया गठबंधन से अलग होने का जो एक कारण और जो समझ में आता है, वो आम आदमी पार्टी का राजनीतिक संकट भी है. फिलहाल पार्टी की सिर्फ पंजाब में सरकार है और वह अभी क्षेत्रीय राजनीति की ओर ज्यादा केंद्रित नज़र आती है, जबकि इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय राजनीति के लिए बनाया गया था.
साल 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं और यहां उसका सीधा मुक़ाबला कांग्रेस से है, जिसके लिए पार्टी मतदाताओं के बीच कोई संशय नहीं रखना चाहती. वो एक बार फिर कांग्रेस-भाजपा दोनों के मुक़ाबले ख़ुद को एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है.
हालांकि, . ये भी देखना होगा कि अब जब आप गठबंधन से अलग हो गई है, तो इसका विपक्षी एकता पर क्या असर पड़ेगा. संजय सिंह ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि उनकी पार्टी संसद में भाजपा सरकार की नीतियों का विरोध करती रहेगी. संसद में जो मुद्दे उठाए जाएंगे, उनमें वह टीएमसी और डीएमके के साथ हैं मगर कांग्रेस का साथ नहीं देना चाहते हैं.
संजय सिंह ने आगे कहा, ‘दिल्ली में बुलडोज़र चलाया गया. हमारे यूपी-बिहार के लोगों के मकानों और दुकानों को तोड़ा गया. उत्तर प्रदेश में पांच हज़ार स्कूल बंद किए गए. ये सब मुद्दे उठाएंगे. इसके अलावा प्लेन क्रैश, ऑपरेशन सिंदूर और बिहार में एसआईआर से जुड़े मुद्दों पर संसद में सवाल पूछेंगे.’
गौरतलब है कि इंडिया गठबंधन का अक्सर राज्यों में गठबंधन को लेकर टकराव ही देखने को मिला है. बंगाल में ममता बनर्जी चुनावी राजनीति में कांग्रेस से दूरी बनाए हुई हैं लेकिन गठबंधन में शामिल हैं. पंजाब में लोकसभा चुनाव और दिल्ली में विधानसभा के दौरान आप और कांग्रेस साथ नहीं आए. यूपी के उपचुनाव में अखिलेश यादव अकेले लड़े थे. बिहार में इस साल के आख़िर में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां महागठबंधन की कमान राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के हाथों में है. ऐसे में ये साफ है कि राज्यों में गठबंधन के नेता कांग्रेस के नेतृत्व से परहेज करते हैं.
