नई दिल्ली: कांग्रेस ने मंगलवार (22 जुलाई, 2025) को दावा किया कि जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के पीछे उनके द्वारा बताए गए स्वास्थ्य कारणों से कहीं अधिक ‘गहरे कारण’ हैं. कांग्रेस ने कहा कि उनका इस्तीफा उनके लिए तो अच्छा है, लेकिन उन लोगों के लिए बुरा है, जिन्होंने उन्हें इस पद के लिए चुना.
मालूम हो कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार (21 जुलाई) को ‘स्वास्थ्य कारणों’ का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
भारत के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति के इस्तीफ़े को लेकर अटकलों का दौर जारी है.
इस बीच, कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि इस कदम के पीछे ‘कहीं और भी गहरे कारण’ हैं, जबकि लोकसभा में पार्टी के उपनेता गौरव गोगोई ने केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या उन्हें इस्तीफे की पहले से जानकारी थी.
गोगोई ने उपराष्ट्रपति पद के लिए परिवर्तन योजना के बारे में भी सरकार से स्पष्टीकरण मांगा. उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘माननीय उपराष्ट्रपति का इस्तीफ़ा अचानक और चौंकाने वाला है. मैं आदरणीय धनखड़ जी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन यह केंद्र सरकार को स्पष्ट करना होगा कि क्या उन्हें पहले से सूचना थी और क्या उन्होंने सुचारू परिवर्तन की योजना बनाई थी. कल माननीय उपराष्ट्रपति की अध्यक्षता में हुई बैठक में वरिष्ठ मंत्रियों की अनुपस्थिति अब और भी महत्वपूर्ण हो गई है.’
इस बीच, रमेश ने कहा कि धनखड़ का इस्तीफ़ा उनके लिए अच्छा है, लेकिन उन लोगों के लिए बुरा है जिन्होंने उन्हें इस पद के लिए चुना था.
उन्होंने सोमवार को दूसरी राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की बैठक में केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू की अनुपस्थिति पर भी सवाल उठाया और कहा कि दोपहर एक बजे से शाम साढ़े चार बजे के बीच कुछ बहुत गंभीर घटना घटी, जिससे उनकी जानबूझकर अनुपस्थिति का कारण पता चलता है.
रमेश ने कहा कि धनखड़ ने सोमवार दोपहर 12.30 बजे राज्यसभा की बीएसी की अध्यक्षता की. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘इसमें सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू सहित अधिकांश सदस्य शामिल हुए. कुछ चर्चा के बाद बीएसी ने शाम 4.30 बजे फिर से बैठक करने का फैसला किया.’
रमेश ने कहा कि शाम 4.30 बजे धनखड़ की अध्यक्षता में बीएसी की बैठक फिर से हुई. रमेश ने दावा किया, ‘इसमें नड्डा और रिजिजू के आने का इंतज़ार किया गया. वे नहीं आए. जगदीप धनखड़ को व्यक्तिगत रूप से सूचित नहीं किया गया था कि दोनों वरिष्ठ मंत्री बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं. स्वाभाविक रूप से उन्हें इस बात का बुरा लगा और उन्होंने बीएसी की अगली बैठक आज दोपहर 1 बजे के लिए टाल दी.’
उन्होंने कहा, ‘इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच ज़रूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया. अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए, जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है. हमें इसका मान रखना चाहिए. लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं.’
रमेश ने कहा, ‘धनखड़ जी ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ़ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज़ उठाई. उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते ‘अहंकार’ की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. मौजूदा ‘G2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की. वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है. जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है. साथ ही, यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था.’
इस्तीफे का कोई संकेत नहीं
धनखड़ ने सोमवार शाम अचानक चिकित्सा कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेज दिया और कहा कि वह तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं.
74 वर्षीय धनखड़ ने अगस्त 2022 में पदभार ग्रहण किया था और उनका कार्यकाल 2027 तक है. वह राज्यसभा के सभापति भी थे और उन्होंने संसद के मानसून सत्र के पहले दिन इस्तीफा दे दिया.
दिन की कार्यवाही समाप्त होने से पहले धनखड़ ने सदस्यों को एक प्रस्ताव के नोटिस के बारे में बताया जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा – जिनके घर से जले हुए नोट मिले थे, को हटाने के लिए एक वैधानिक समिति के गठन की मांग की गई थी. वर्मा ने इस मामले में उन्हें दोषी ठहराने वाली आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की है.
धनखड़ ने सभी राजनीतिक दलों से सत्र में सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने का भी आग्रह किया.
उन्होंने कहा, ‘एक समृद्ध लोकतंत्र निरंतर कटुता को बर्दाश्त नहीं कर सकता. राजनीतिक तनाव कम होना चाहिए, क्योंकि टकराव राजनीति का सार नहीं है. राजनीतिक दल अलग-अलग तरीकों से समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास कर सकते हैं, लेकिन भारत में कोई भी राष्ट्र के हितों का विरोध नहीं करता.’
धनखड़ ने कहा, ‘मैं सभी राजनीतिक दलों से सौहार्द और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने का आग्रह करता हूं, टेलीविजन या अन्यत्र नेताओं के खिलाफ अभद्र भाषा या व्यक्तिगत हमलों से बचें. ऐसा व्यवहार हमारी सभ्यता के मूल तत्व के विपरीत है.’
एक विवादास्पद कार्यकाल
धनखड़ ने अगस्त 2022 में विपक्ष की उम्मीदवार राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को हराकर 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया. उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में उनका कार्यकाल विपक्षी दलों के साथ टकराव से भरा रहा.
दिसंबर 2024 में ‘इंडिया’ गठबंधन ने धनखड़ के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और सदन में विपक्ष की आवाज़ न सुनने देने के उनके फैसलों का हवाला देते हुए उन्हें पद से हटाने के लिए एक नोटिस पेश किया था. बाद में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने ‘प्रक्रियात्मक अनियमितता’ और ‘वर्तमान उपराष्ट्रपति को बदनाम करने’ के प्रयासों का हवाला देते हुए अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
अगस्त में भी विपक्ष ने धनखड़ को हटाने के लिए इसी तरह का एक प्रस्ताव लाने की योजना बनाई थी, लेकिन कोई नोटिस पेश नहीं किया गया.
हाल के महीनों में धनखड़ ने न्यायपालिका के खिलाफ जमकर हमला बोला था. अप्रैल में धनखड़ ने कहा था कि न्यायाधीश ‘सुपर संसद’ के रूप में काम कर रहे हैं और उनकी कोई जवाबदेही नहीं है ‘क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता.’ धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 – जो सर्वोच्च न्यायालय को शक्तियां प्रदान करता है – को ‘लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल‘ बताया था और कहा था कहा कि ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जहां भारत के राष्ट्रपति को न्यायपालिका निर्देश दे.
उन्होंने संसद के बजट सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने के बाद न्यायपालिका के विरुद्ध भी आलोचनात्मक टिप्पणियां की थीं.
उपराष्ट्रपति बनने से पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में धनखड़ ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ लंबे समय तक टकराव के कारण बदनाम हो चुके थे.
राज्यपाल के रूप में धनखड़ ने भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा और प्रशासन व शैक्षणिक संस्थानों के राजनीतिकरण से लेकर कथित अलोकतांत्रिक रवैये तक, कई मुद्दों पर राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस पर लगातार निशाना साधा था. जवाब में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने धनखड़ को बार-बार ‘असली विपक्ष का नेता’ करार दिया.
इससे पहले उन्होंने 1990 से 1991 तक चंद्रशेखर सरकार के दौरान संसदीय मामलों के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया है, 1989 से 1991 तक लोकसभा के सदस्य के रूप में, 1993 से 1998 के बीच राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया है. पेशे से वकील, धनखड़ भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और जनता दल सहित राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी दलों से जुड़े रहे हैं.
