श्रीनगर: कश्मीर में झेलम नदी के किनारों से अतिक्रमण हटाने के नाम पर प्रशासन द्वारा शुरू किए गए अभियान में आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में लगभग छह लाख पेड़ काट दिए गए हैं.
इस संबंध में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मामले में सबसे आगे रहने वाले इस क्षेत्र में सैकड़ों-हजारों पेड़ों की कटाई, वैज्ञानिक प्रमाणों के बढ़ते दायरे को झुठलाती प्रतीत होती है कि पेड़ लगाने से नदी के तटबंध मजबूत होते हैं, कटाव कम होता है और प्राकृतिक पर्यावरण बहाल होता है.
एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि काटे गए ज़्यादातर पेड़ चिनार के थे, जो नहरों और झेलम तटबंधों की भीतरी ढलानों में उग आए थे.
मालूम हो कि चिनार अपनी गहरी जड़ों के लिए जाने जाते हैं, जो मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं और आस-पास के पौधों को लाभ पहुंचाते हैं.
इस मामले में प्रशासन ने अपनी कार्रवाई को उचित ठहराते हुए तर्क दिया है कि इन पेड़ों ने नदी प्रणाली के ‘प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया’ है और जब नदी में बाढ़ आई, तो ‘अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान भी पहुंचाया.’
श्रीनगर स्थित एक्टिविस्ट एमएम शुजा द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी से पता चला है कि सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण (आईएंडएफसी) विभाग के मुख्य अभियंता (कश्मीर) के कार्यालय द्वारा इस संबंध में एक ताजा आंतरिक मूल्यांकन किया गया, जिसके दौरान दक्षिण कश्मीर में नदी के उद्गम – वेरीनाग झरने – से लेकर घाटी में इसकी नहरों और सहायक नदियों तक के किनारों पर लगे लगभग 6.33 लाख पेड़ों की पहचान ‘अतिक्रमण’ के रूप में की गई.

आरटीआई आवेदन के जवाब में सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग ने खुलासा किया कि 2020 से 2025 तक 5.84 लाख पेड़ काटे गए. इनमें से 4.79 लाख पेड़ अकेले विभाग के सुंबल डिवीजन द्वारा काटे गए, जो बारामूला जिले के पंजिनारा से बोनियार तक है. यहां झेलम नदी नियंत्रण रेखा (एलओसी) को पार करके पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में प्रवेश करती है और फिर चिनाब नदी में मिल जाती है.
ज्ञात हो कि सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग जल शक्ति विभाग की नोडल शाखा है, जो कश्मीर और जम्मू संभागों में अपनी दो शाखाओं के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेश के जल संसाधनों का प्रबंधन करता है.
इस विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि काटे गए पेड़ों का नदी किनारों पर अतिक्रमण था.
पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण हम किसी आपदा को होने नहीं दे सकते: अधिकारी
अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण हम किसी आपदा को होने नहीं दे सकते. पर्यावरण से पहले हमें यह देखना होगा कि क्या सही है और क्या गलत. ज़्यादातर मामलों में ये पेड़ व्यावसायिक लाभ के लिए लगाए गए थे और कभी-कभी तो ज़मीन पर दावा करने के लिए भी लगाए गए थे.’
हालांकि, अधिकारी ने यह स्पष्ट करने से इनकार कर दिया कि क्या विभाग ने हटाए जाने वाले पेड़ों के प्रकार, उनकी उम्र, उन्हें ‘अतिक्रमण’ के रूप में वर्गीकृत किया था और क्या इसे लेकर नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय जलवायु पर उनके हटाए जाने का समग्र प्रभाव सूचीबद्ध करने के लिए कोई सर्वेक्षण किया गया था.
आईएंडएफसी विभाग का यह खुलासा इस पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है कि इस वर्ष कश्मीर में दैनिक तापमान में रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि हुई है और कृषि भूमि का बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक क्षेत्रों में रूपांतरण हो रहा है. हरित क्षेत्रों में तेजी से कंक्रीट के ढांचे खड़े हो रहे हैं, जिससे आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन की स्थिति और खराब होने की आशंका है.
आरटीआई के अनुसार, विभाग ने झेलम और इसकी सहायक नदियों और नहरों के नेटवर्क से अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत 1,884 संरचनाओं और 283 चारदीवारी को भी हटा दिया, जो कश्मीर घाटी में घरेलू आपूर्ति, सिंचाई और अन्य उपयोगों के लिए पानी के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य करते हैं.
आरटीआई आवेदन के जवाब में विभाग ने कहा, ‘अतिक्रमण हटाना एक सतत प्रक्रिया है और यह अनिवार्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि (झेलम नदी के) प्रवाह में कोई बाधा न आए.’
नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए नदी के किनारे की वनस्पति महत्वपूर्ण
हालांकि, नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और इसके क्षरण के विभिन्न कारणों को दूर करने के लिए नदी के किनारे की वनस्पति एक महत्वपूर्ण कारक है.
ऑस्ट्रेलिया में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि पेड़ों की जड़ें पेड़ों की छतरी की आधी से भी कम त्रिज्या पर नदी के किनारों को कटाव से बचाती हैं.
वहीं एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि वनों के बढ़ते स्तर से पांच साल बाद आस-पास की नदियों में पानी की उपलब्धता 23% और 25 साल बाद 38% कम हो सकती है.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रीसेंट टेक्नोलॉजी एंड इंजीनियरिंग में 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि झेलम नदी और उसकी सहायक नदियों के रास्ते में लगाए गए पेड़ों द्वारा नदी के रास्ते पर अतिक्रमण के परिणामस्वरूप जलमार्ग संकरा हो गया, जिसने 2014 की विनाशकारी बाढ़ को और बढ़ा दिया, जिसमें जम्मू और कश्मीर में 200 से अधिक लोग मारे गए और राजधानी श्रीनगर शहर सहित कश्मीर के बड़े हिस्से जलमग्न हो गए.

अध्ययन में कहा गया है कि नदी के सामान्य मार्ग में लगाए गए पेड़ों के रूप में नदी के अधिकारों का अतिक्रमण एक आम बात है, जिसके कारण ‘किनारों में दरारें पड़ जाती हैं और वे ऊपर की ओर बढ़ जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मैदानी इलाकों में बाढ़ आ जाती है.’
साथ ही यह भी कहा गया है कि झेलम प्रणाली के तटबंधों के साथ अधिक पेड़ लगाने से ‘मिट्टी के कटाव और सतही अपवाह को कम करने’ में मदद मिल सकती है.
श्रीनगर स्थित पंजीकृत ट्रस्ट, पर्यावरण नीति समूह (ईपीजी) के संयोजक फैज बख्शी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में बुनियादी ढांचे के विकास की आड़ में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई है, जिसका स्थानीय जलवायु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
ईपीजी ने 2014 की बाढ़ और केंद्र शासित प्रदेश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नीति के कार्यान्वयन के मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में सरकार को आड़े हाथों लिया है.
2001 से 2023 के बीच जम्मू-कश्मीर में 4,190 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो गए: रिपोर्ट
अमेरिका स्थित ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के अनुसार, 2001 से 2023 के बीच जम्मू-कश्मीर में 4,190 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो गया है.
शनिवार (5 जुलाई) को श्रीनगर में मौसम विभाग ने 72 साल का उच्चतम तापमान 37.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया, जो 1892 के बाद से जुलाई का तीसरा सबसे गर्म दिन भी था.
गौरतलब है कि 1 जुलाई को दक्षिण कश्मीर में पहलगाम, जो अपनी बर्फ से ढकी चोटियों और ठंडी हवा के लिए जाना जाता है, ने जम्मू शहर की तुलना में अधिक तापमान दर्ज किया, जो जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी है और अपनी चिलचिलाती गर्मी के लिए कुख्यात है.
इस संबंध में बख्शी ने कहा, ‘जब पेड़ काटे जाते हैं, तो उनमें जमा कार्बन का अधिकांश भाग कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है. विकास की आड़ में हमारी पर्यावरण नीति एक आपदा की ओर बढ़ रही है.’
